लेखनी प्रतियोगिता -07-Apr-2022 - अंगूर की बेटी
अंगूर की बेटी नशीली बड़ी,
बोतल भी झूमे खड़ी-खड़ी ।
सीधी साधी थी मैं तो बड़ी ,
काहे को नजरें उससे लड़ी ।
नशे का छाया सुरूर यहां पर ,
और नखरे दिखावे वो पड़ी पड़ी ।
मयकदें में बोतले भरी-भरी ,
पैमानों की लगती झड़ी झड़ी ।
राज दिलों के खोले जहां में ,
दीवानों को तड़पावें खड़ी खड़ी।
अंगूर की बेटी नशीली बड़ी,
बोतल भी झूमे खड़ी खड़ी ।
मधुशाला में लग गई कतारें बड़ी,
नजरें चुरावें वो पड़ी पड़ी।
नशा इसका देखो कितना बुरा ,
व्यापार भी खा जावे खड़ी-खड़ी ।
व्यसनों में इसका नाम खराब ,
दीवानों में हैं जी ये आफताब ।
दुश्मनों की कोई परवाह नहीं,
नवाब बनावे घड़ी-घड़ी ।
महफिल की रौनक बने यहां पर ,
दिखावे की दुनिया की छड़ी छड़ी ।
दोस्त यह बना दे जल्दी बड़ी ,
नशा ये चढ़ावे खड़ी-खड़ी ।
लड़खड़ाते कदमों की चाप सुनो,
आते तूफानों की आहट सुनो।
इश्क के बुखार की बयार आई,
शायर ये बनावे खड़ी-खड़ी ।
अंगूर की बेटी नशीली बड़ी ,
बोतल भी झूमें खड़ी खड़ी।।
प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
Seema Priyadarshini sahay
08-Apr-2022 04:46 PM
😍बहुत खूब मैम..
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Punam verma
08-Apr-2022 08:12 AM
Very nice
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Zakirhusain Abbas Chougule
08-Apr-2022 12:37 AM
Nice
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